गेहूं पीला होना स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है। यह टिड्डी दल संकट या रोखठम के कारण ऐसा हो सकता है। रोखठम, टिड्डी दल के उभरते हुए संक्रमण की एक प्रकार है, जो खेती के महिनों में हवा के माध्यम से आकर पौधों को आक्रमण करता है। जब रोखठम एक गेहूं वृक्ष पर प्रभाव डालता है, तो वृक्ष ऊपरी भाग को प्रभावित करने के लिए एक छोटी सी रासायनिक प्रभावित क्षेत्र बना देताय है जो पीले रंग में परिवर्तित हो जाता है।
वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, टिड्डी दल के संगठन का प्रमुख कारण मौसम और उपजाऊ पर्यावरण में बदलाव है। रोखठम गेहूं कई प्रमुख सभ्यताओं में पाया जाता है, इसलिए इसे समाधान नहीं बल्क प्रबंधन की ऑपरेशनल योजना डेवलप करके कम किया जा सकता है।
एक समय में, जब रोखठम की उच्च संख्या होती थी, किसानों को गेहूं की फसल में बड़ी नुकसान का सामना करना पड़ता था। यह सुनिश्चित करने के लिए कि टिड्डी दल संकट न केवल किसानों के लिए बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती है, केरब संस्थान और कृषि जैव विज्ञान केंद्र ने एक कार्यशाला आयोजित कर राष्ट्रीय स्तर पर समस्या को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए इससे निपटने के उपाय ढूंढ़ने की आवश्यकता को महसूस किया।
मौसम के उल्लंघन और विपर्यय ने रोखठम के प्रभाव को बढ़ाया है, जिससे गेहूं के पीले होने की संख्या भी बढ़ रही है। जब हवामान बदलता है, तो टिड्डी दल में उबाल आने लगता है और यह गेहूं पर आसार प्रभावित करने लगता है। इस प्रकार के प्रभाव के कारण, गेहूं पिला हो जाता है और अक्सर उत्पादन को कम कर देता है।
इस समस्या का समाधान करने के लिए, कृषि वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञों ने कई उपाय और नवाचारी तकनीकों का विकास किया है। इनमें शामिल हैं जेनेटिक इंजीनियरिंग, बायोपेस्टिसाइड और बायोकंट्रोल जैसी तकनीकें। इन तकनीकों का उपयोग करके, किसान अपनी फसलों को टिड्डी दल से बचाने के तरीकों पर अधिक जोर दे सकते हैं।
अतुलनीय खेती तकनीकों और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग करके, गेहूं की उपज बढ़ाने और टिड्डी दल संकट से निपटने के लिए कठिनाईयों का सामना किया जा सकता है। तकनीकी और प्रबंधन संदर्भों में नवाचारी सोच और वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता है, ताकि हम आने वाले वर्षों में गेहूं प्रोपेशन और पीलापन की समस्या को नियंत्रित कर सकें।